Saturday, 19 October 2019

ऐ मौत तू बेदर्द क्यों है
जिंदगी तुझ तक पहुँच रही क्यों है
ज़िक्र करते ही तेरा , लब सील जाते हैं
जब तू मिलती है किसी अपने को
तो दिल हिल जाते है।
जाने आज फिर मेरी आँखों मे नमी क्यों है।
ऐ मौत बेदर्द इतनी क्यों है।
क्यों करती है मुझे तू मुहब्बत इतनी
महबूब के जैसे तड़पआ रही है मिलने को।
गर है तू महबूब तो फिर दर कैसा Mइलने में।
आज आ भर ले मुझे बहो में।
आज भी दरम्यान इतना फसला क्यों है।
ऐ मौत तू इतनी बेदर्द क्यों है।
सोच में पड़ा हु में कई क्या कह तुझे
दरअसल तू नही है बेदर्द
तू तो है एक अंतिम पड़ाव
जहा से अपने पराये हो जाते है
तू है बेसहारो का सहारा
तू है बेइंतेहा इश्क़ में हरे हुवो का अंजाम
तू न हो तो हाथो में न हो जैम
तू है अनाथो की नाथ
तू है बुकहि वयसि दे ह का परिणाम
जब मरण ही है जीवन का अंजाम
तो क्यों है ये त्योहार
दीवाली
रखी
क्यों न फोड़ पटाखे चिटा में
क्यों न जलाये अपनी बुराइयो को
और उत्तर दे मौत के घाट
अब नही है दर मुझे तेरा
क्योंकि मैं जिन चाहता हु
च्चाट हु कि खुल के बिटू ये पल
क्यों कि तू बेदर्द नही महबूब है मेरी
और खुशी है मुझे तुझसे मिलनके की
न जी दर

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