रक्तपान
हे नरश्रेष्ठ
उठो, जागो,
बेला आयी बलिदान की,
शत्रुओं के रक्तपान की,
हे नरश्रेष्ठ
उठो, जागो,
कर दो समर्पण,अपने भय का।
फूँक दो बिगुल, दिग्विजय का।
हे नरश्रेष्ठ
उठो, जागो,
त्यागकर भय की बेड़ियाँ,
खड्ग बनाओ पुरुषार्थ का।
भरो हुंकार इस रण में,
पहन कर वस्त्र परमार्थ का।
उबलने दो वह्नि शिराओं में,
फैला दो शुरत्व हवाओं में।
हे नरश्रेष्ठ
उठो, जागो,
देश की मर्यादा हरने वालों का,
रक्तपान करो तुम।
वीर भोग्य वसुंधरा आदिवाक्य का,
सम्मान करो तुम।
हे नरश्रेष्ठ
उठो, जागो,
न करो दूषित अपने रक्त को,
वैराग्य के अभिमान से।
न करो पतला उसे,
कायरता के विषपान से।
इतिहास जब सवाल करेगा, तो क्या कहोगे,
उस वक्त भी क्या ,ध्यानमग्न और शांत ही रहोगे।
क्या रह पाएगी शांति जब, स्वतंत्रता छिन जाएगी।
क्या तुझे ग्लानि नही होगी, जब भारत माँ सर झुकायेगी।
27052018
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