११ सितम्बर २०१७
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क्या लिखूँ, कि लेखनी थर्राती है |
जो लिखना चाहूँ कुछ यादें,
तो यादें विस्मृत हो जाती है||
जीवन में यादें बहुत मिली,
हैं सौगातें भी बहुत मिली|
लेकिन चलते फिरते पथ ,
ये सौगातें खो जाती हैं ||
जो लिखना चाहूँ कुछ यादें,
तो यादें विस्मृत हो जाती है||
यूँ तो जीवन के इस पथ पर,
मिलते है अगणित लोग मगर |
पर इस पथ ले हर पथिक कि राहें,
अलग अलग हो जातीं हैं||
जो लिखना चाहूँ कुछ यादें,
तो यादें विस्मृत हो जाती है||
हैं मिले बहुत सम्मान और,
हैं मिले बहुत अपमान मगर|
इस यश अपयश के चक्कर में,
माथे की नस खीच जाती है||
जो लिखना चाहूँ कुछ यादें,
तो यादें विस्मृत हो जाती है||
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क्या लिखूँ, कि लेखनी थर्राती है |
जो लिखना चाहूँ कुछ यादें,
तो यादें विस्मृत हो जाती है||
जीवन में यादें बहुत मिली,
हैं सौगातें भी बहुत मिली|
लेकिन चलते फिरते पथ ,
ये सौगातें खो जाती हैं ||
जो लिखना चाहूँ कुछ यादें,
तो यादें विस्मृत हो जाती है||
यूँ तो जीवन के इस पथ पर,
मिलते है अगणित लोग मगर |
पर इस पथ ले हर पथिक कि राहें,
अलग अलग हो जातीं हैं||
जो लिखना चाहूँ कुछ यादें,
तो यादें विस्मृत हो जाती है||
हैं मिले बहुत सम्मान और,
हैं मिले बहुत अपमान मगर|
इस यश अपयश के चक्कर में,
माथे की नस खीच जाती है||
जो लिखना चाहूँ कुछ यादें,
तो यादें विस्मृत हो जाती है||