Sunday, 22 November 2015

पथ और पथिक

कौन है काफ़िर कौन है ब्राह्मन, सोचो तो ना बूझ पड़ेगा।
पथ है क्या और पथिक कौन है, कुछ अंतर ना सूझ पड़ेगा।।
रंग भी सबका  अलग अलग है, भिन्न भिन्न है भाषा सबकी।
जितना सोचोगे भटकोगे, अंतरमन पर बोझ बढ़ेगा।।

Thursday, 30 April 2015

---दिखता है बस मरघट---

---दिखता है बस मरघट---



दिखता है बस मरघट, दिखता है बस मरघट||

कल तक थी जो धूप सुनहरी,
तीक्ष्ण ताप अब देती है|
अंतर्मन में आग लगी है,
बाहर भी दुःख देती है||
कल तक जो बारिश की बुँदे,
मन को सुख पहुचती थीं|
जो बाहर और अंतर्मन का,
ताप शांत कर जाती थीं||
इनसे बचने को अब नहीं है सिर पर छत|

दिखता है बस मरघट, दिखता है बस मरघट||

इस भूखंड को उलट पलट कर,
सृष्टि ने कैसा खेल रचा|
भवन नगर विध्वंस हो चले,
अब केवल भूखंड बचा||
अब मातम के दौर चलेँगे,
नहीं हसेगा कोई अब|
रुदन और क्रन्दन ही होगा,
मृत्यु यहाँ नाचेगी जब||
चील और कौव्वों का होगा केवल यहाँ पे जमघट||

दिखता है बस मरघट, दिखता है बस मरघट||

भूत गया है बीत,
थीं जिसमें लाखों लाशें और रुदन|
छोड़ उसे देखें इस पल को,
करें नव युग का सृजन||
टूटी हुई कड़ी को जोड़ें,
जाति पाति के भेद को छोड़ें|
नगरों को अब पुनः बसायें,
मानवता की शपथ न तोड़ें||

जब हम होगें एक तो टल जाएगी बाधा विकट||

नहीं बचेगा मरघट, नहीं बचेगा मरघट||

फिर पसरेगी हरियाली,
ना चुभेगी अब बारिश और धूप|
होगी छत जब सबके सिर पर,
फैलेगी तब शांति अनूप||
जब हम करेगें मिल कर सेवा,
नहीं रहेगा दुःख निकट|

नहीं बचेगा मरघट, नहीं बचेगा मरघट||